आवश्यक वक्तव्य
- इति, अध्याय, वध, तथा समाप्त इन शब्दों का उच्चारण नहीं करना चाहिए।
- अपने हाथ से लिखित तथा ब्रहमणेत्तर से लिखित पुस्तक का पाठ नहीं करना चाहिए।
- स्तोत्र आदि का अन्तिम श्लोक दो वार कहना चाहिए।
- एवमेव नमस्कार का जहां प्रसंग हो वहां दो या तीन वार - नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः बोलना चाहिए।
- सम्पुट मंत्र या अन्य मन्त्र जिसका सम्पुट लगाना हो काम से काम १०००० या १००००० जप कर लें फिर दुर्गासप्तसती के ७०० मंत्रो में सम्पुट लगाकर पाठ करें |
क्रम
दुर्गा सप्तशती के प्रयोग तीव्र होते हैं, सम्पुट प्रयोग कर रहे हैं तो विपरीत प्रभाव भी नहीं पड़ता व प्रयोग सफल ही रहते हैं।
मेरे द्वारा किये गये प्रयोग विधि-क्रम
- घट स्थापना करें या सामने चित्र या मूर्ति या यंत्र रख लें
- आत्मशुद्धि, भूतशुद्धि, आसनशुद्धि कर लेवें।
- संकल्प लेकर दिग्रक्षण, वरूण पूजन, दीप प्रज्वलन, गणेश पूजन, गुरू पूजन, मातृका पूजन, नवग्रहादि पूजन करें या यथा शक्ति पूजन करें।
- कवच पाठ
- अर्गला पाठ
- कीलक पाठ
- रात्रिसूक्त का पाठ
- फिर कुञ्जिका स्तोत्र करें।
- नवार्ण मंत्र की कम से कम 5 माला जप करें।
- फिर तीनों का चरित्रों का पाठ करें या सम्पुट लगाकर पाठ करें। (सर्वप्रथम मध्यम चरित, फिर प्रथम चरित व अंत में उत्तम चरित करें)
- नवार्ण मंत्र का फिर 5 माला जप करें ।
- अन्त में देवी सूक्त का पाठ कर, क्षमा-प्रार्थना स्तोत्र का पाठ कर जप-फल को मां भगवती के वामहस्त में समर्पण करें।
विपत्ति नाश हेतु-
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वोस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तुते।।
रोगनाश हेतु-
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान् सकलान्भीष्टान्।।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हयाश्रयतां प्रयान्ति।।
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान् सकलान्भीष्टान्।।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हयाश्रयतां प्रयान्ति।।
महामारी नाश हेतु-
जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
आरोग्य और सौभाग्य प्राप्ति हेतु-
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि में परम सुखम्।
रूपं देहि यशो देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि में परम सुखम्।
रूपं देहि यशो देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
सुलक्षणा पत्नी प्राप्ति हेतु-
पत्नीं मनोरमा देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।।
बाधाशान्ति हेतु-
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्।।
रक्षा प्राप्ति हेतु-
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिः स्वनेन च।
सब प्रकार के कल्याणादि हेतु-
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्य त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।
परिवार, पुत्र एवं पत्नी रक्षा हेतु-
गोत्रमिद्राणि में रक्षेत्पशुन्में रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मी भाया रक्षतु भैरवी।।
विद्या लाभ हेतु-
ओं ऐं विद्यावन्तं यशस्वन्तं जनं कुरु।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ऐं ओं।।
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्य त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।
परिवार, पुत्र एवं पत्नी रक्षा हेतु-
गोत्रमिद्राणि में रक्षेत्पशुन्में रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मी भाया रक्षतु भैरवी।।
विद्या लाभ हेतु-
ओं ऐं विद्यावन्तं यशस्वन्तं जनं कुरु।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ऐं ओं।।
कमजोर बुद्धि वालों को मेधा शक्ति प्राप्ति हेतु-
मेधे सरस्वति वरे भूतिबाभृवितामसि।
नियते त्वं प्रसीदेशे नारायणि नमोस्तुते।।
शत्रु नाश हेतु-
देवि शूलेन वज्रेण बाणैरसिभिर्ऋष्टिभिः।
जधान रक्तबीजं तं चामुण्डापीत शोणितम्।।
शत्रु विनाश एवं उसके द्वारा ली गई सम्पत्ति प्राप्ति हेतु-
हत्वा रिपूनस्खलितं तव तत्र भविष्यति।
बालकों के जादू-टोना, नजर दोष, ग्रह-दोष दूर करने हेतु-
बालग्रहाभिभूतानां बालानां शान्तिकारकम्।
संधातभेदे च नृणां मैत्रीकरणमुत्तमम्।।
राक्षस, भूत-प्रेत बाधा दूर करने हेतु-
दुर्वृत्तानामशेषाणां बलहानिकरं परम्।
रक्षोभूतपिशाचानां पठनादेवनाशनम्।।
सांसर्गिक रोग, ग्रह बाधा, खराब स्वप्न दोष दूर करने हेतु-
उपसर्गाः शमं यान्ति ग्रहपीड़ाश्च दोरुणाः।
दुःस्वप्नं च नृभिदृष्टं सुस्वप्नभुपजायते।।
शत्रु मारण के हेतु-
तदा तदा वतीर्याहं करिष्याम्यरिसं क्षयम्।।
किसी भी प्रकार का भय दूर करने हेतु-
नमस्तेस्तु महारौद्रे महाघोर पराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभय विनाशिनि।।
तत्र तत्रार्थ लाभश्च विजयः सर्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कमं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।
परमैश्वर्यतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्।
मेधे सरस्वति वरे भूतिबाभृवितामसि।
नियते त्वं प्रसीदेशे नारायणि नमोस्तुते।।
शत्रु नाश हेतु-
देवि शूलेन वज्रेण बाणैरसिभिर्ऋष्टिभिः।
जधान रक्तबीजं तं चामुण्डापीत शोणितम्।।
शत्रु विनाश एवं उसके द्वारा ली गई सम्पत्ति प्राप्ति हेतु-
हत्वा रिपूनस्खलितं तव तत्र भविष्यति।
बालकों के जादू-टोना, नजर दोष, ग्रह-दोष दूर करने हेतु-
बालग्रहाभिभूतानां बालानां शान्तिकारकम्।
संधातभेदे च नृणां मैत्रीकरणमुत्तमम्।।
राक्षस, भूत-प्रेत बाधा दूर करने हेतु-
दुर्वृत्तानामशेषाणां बलहानिकरं परम्।
रक्षोभूतपिशाचानां पठनादेवनाशनम्।।
सांसर्गिक रोग, ग्रह बाधा, खराब स्वप्न दोष दूर करने हेतु-
उपसर्गाः शमं यान्ति ग्रहपीड़ाश्च दोरुणाः।
दुःस्वप्नं च नृभिदृष्टं सुस्वप्नभुपजायते।।
शत्रु मारण के हेतु-
तदा तदा वतीर्याहं करिष्याम्यरिसं क्षयम्।।
किसी भी प्रकार का भय दूर करने हेतु-
नमस्तेस्तु महारौद्रे महाघोर पराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभय विनाशिनि।।
तत्र तत्रार्थ लाभश्च विजयः सर्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कमं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।
परमैश्वर्यतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्।
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