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|| श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् ||

भगवान श्री विष्णु के एक हजार नामों की महिमा अवर्णनीय है। इन नामों का संस्कृत रूप विष्णुसहस्रनाम के प्रतिरूप में विद्यमान है। विष्णुसहस्रना...

॥ माँ प्रत्यंगिरा साधना ॥


प्रत्यंगिरा देवी एक हिन्दू देवी हैं | इनका सर सिंहिनी और शेष मानव का है | ये विष्णु, दुर्गा, काली, तथा नरसिंघ के एकीकृत रूप हैं | इन्ही को भद्रकाली भी कहा जाता है | 

अन्य नाम :
१. श्री प्रत्यंगिरा 
२. श्री महा प्रत्यंगिरा 
३. श्री विपरीत प्रत्यंगिरा
४. श्री महा विपरीत प्रत्यंगिरा  
५. भद्रकाली 
६. सिंहिनी 
७. नर सिंहिनी 

यदि आपके शत्रु आपके प्रति शत्रु का भाव रखते हैं और आपके ऊपर तांत्रिक प्रहार बार-बार करते हैं या अन्य किसी प्रकार का अभिचार करते हैं किसी न किसी रूप में आपको सामाजिक, आर्थिक,शारीरिक हानि पहुँचा रहे हों और आपके भविष्य को ख़राब करने पर तुले हुए हैं | तो आप माँ भद्रकाली के इस स्वरुप की उपासना कर शत्रु द्वारा किये गए किसी भी प्रकार के अभिचार, टोना-टोटका, गड़ंत, मूठ, चौकी, घायल इत्यादि को माँ भगवती नष्ट कर देती हैं |  यही नहीं माँ के अनेको प्रयोग तीव्र भी हैं जो की शरू द्वारा किये गए किसी भी प्रकार के अभीचार को शत्रु पर ही वापस दुगनी तेजी के साथ लोटा देती है | कुछ अन्य प्रयोगों द्वारा शत्रु द्वारा किये गए अभिचार को लौटाती भी है और शत्रु की सारी शक्ति को नष्ट भी कर देती है और शत्रु पर प्रहार भी करती है  |

काले जादू जैसी अनेको विद्याओं को भी अनुष्ठान द्वारा नष्ट किया जा सकता है| बुरे सपने आना, दुष्ट आत्मा द्वारा परेशान करना, ब्रह्मराक्षस, पिशाच आदि से भी रक्षा कर साधक को निडर बनाती है और  रक्षा करती हैं | किसी भी प्रकार की अनिष्ट ग्रह, शत्रु बाधा या अन्य बाधा हो उसको अनुष्ठान द्वारा या उपासना द्वारा समाप्त किया जा  सकता है |  


आप सभी को मेरा सादर-प्रणाम 

धन में रुकावट, स्वस्थ्य समस्या, शत्रु द्वारा लगातार परेशान करना, नवग्रह दोष, कालसर्प, अज्ञात भय, शत्रु द्वारा किया या करवाया गया तंत्र का समाधान | नवग्रह | महामृत्युंजय | बगलामुखी | धूमावती | प्रत्यंगिरा | हरिद्रा गणपति | त्रिलोक्य मोहन गणपति | श्री सूक्तम | बटुक भैरव | स्वर्ण आकर्षण भैरव | हनुमद उपासना आदि | 


  

ब्लाॅग पर दिए गए तंत्र-मंत्रादि विद्याऐं गरुओं, अघोरियों, संतो व महात्मों से प्राप्त, स्वयं द्वारा किए गये साधना परिश्रम व अनुभव व विभिन्न प्रकार के तंत्र-मंत्र वेदादि ग्रन्थों से लिए गए हैं जिनमें (मन्त्रमहौदधि, रूद्रयामल, अथर्ववेद, महार्णवादि) हैं।
तंत्र-मंत्रो का प्रयोग किसी विशेष गुरू, विद्याओं में पारंगत, तंत्र-मंत्रादि की विशेष जानकारी रखने वालों से प्राप्त कर प्रयोगादि करें अन्यथा हानि संभव है।
शांति प्रयोग, धन प्राप्ति प्रयोगादि स्वयं अभ्यास कर व जानकारी जुटाकर की जा सकती है लेकिन षट्कर्म, तीव्र-प्रयोग, अभिचार तंत्र-मंत्र-यंत्र, प्रेतादि प्रयोग किसी अच्छे जानकार व पहुँचे हुए गुरूओं के सान्निध्य में ही करें। बिना पूर्ण जानकारी व अभ्यास के मैदान में न उतरें अन्यथा उससे प्राप्त क्षति के स्वयं अधिकारी होंगे।
जानकार व्यक्ति/साधक दिये गये तंत्र-मंत्र के प्रयोग कर लाभ उठायें।

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