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|| श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् ||

भगवान श्री विष्णु के एक हजार नामों की महिमा अवर्णनीय है। इन नामों का संस्कृत रूप विष्णुसहस्रनाम के प्रतिरूप में विद्यमान है। विष्णुसहस्रना...

॥ शरभ शालुव ॥

शिव पुराण में शरभ की उत्पत्ति नृसिंह भगवान् अवतार के समय बताया है| विष्णुपुराण में विष्णु की महिमा  बताते हुये कहा गया है की भक्त प्रहलाद की स्तुति से नृसिंह भगवान् का क्रोध शांत हुआ, शिव पुराण मे शिव की महिमा बताते हुआ कथा है की समस्त देवताओ ने शिव की प्रार्थना की तो शिवजी ने विचित्र पक्षी का रूप धारण किया जिसका मुँह उल्लू की तरह, नेत्र मे अग्नि सुर्य-चंद्र का वास, धड़ मनुष्य की तरह जो चार हाथो में विशेष-आयुध धारण किये हुये है, नख व्रज के समान तीखे है,  दो पंख हैं एक में काली और दूसरे में दुर्गा का निवास  है, हृदय में जठरानल वे पेट में बड़वानल अग्नि विराजमान है| कटिप्रदेश से बाद का भाग हिरण की तरह एवं पूँछ सिंह के समान लबी है, ऊरू मे व्याधि एवं मृत्यु को धारण किये हुये है| ऐसे शरभरूप पक्षीराज ने नृसिंह भगवान् को चोंच मार कर मूर्छित कर दिया| अपनी पूँछ से दोनों पैर बांध दिये और अपने दोनों पिछ्ले पैर नृसिंह भगवान् के पैरों पर रखे अग्रपादो को नृसिंह भगवान् के वक्षस्थल पर तथा अपने हाथो से नृसिंह भगवान् के हाथो को पकड़कर आकाश में उड़े, तत्पश्चात नृसिंह भगवान् ने शिवजी की स्तुति की एवं अपने स्वरूप का विसर्जन किया तो शिव ने उनकी चर्म को प्रिय मानकर बाघाम्बर धारण किया ऐसी तंत्र ग्रंथो में कथा है|

               अतः पक्षीराज शरभ का प्रयोग नृसिंह प्रयोग से भी धातक है,  इसलिये इसके प्रयोग का अधिकारी उच्च साधक ही हो सकता है| यदि कार्यवश इस शत्रुसंहारक प्रयोग को करना पड़े तो उसे आत्मरक्षा कवच एवं मृत्युंजय प्रयोग का विधिवत साधन करने के बाद ही करना चाहिए| अन्यथा प्रयोगकर्ता को हानि या असफलता हाथ लगेगी| आकाश कल्प भैरव में शरभराज या शालुव पक्षीराज नाम से कई विषेश प्रयोग दिये है|  

                पक्षिराज प्रयोग में वैष्णव उपासना में गरूड़ के प्रयोग दिये गये हैं जिन्हे मारण-मोहन-तारण-उच्चाटनादि षट्कर्मो के काम से लिया जाता है इसलिए शरभपक्षिराज व गरुड़ प्रयोग को गारुड़ी विद्या कहा गया है तथा इस विद्या को गुप्त रखने हेतू कहा भी गया है की:-
"गरुडी विद्या पिता पुत्र न देय" 


आप सभी को मेरा सादर-प्रणाम 

धन में रुकावट, स्वस्थ्य समस्या, शत्रु द्वारा लगातार परेशान करना, नवग्रह दोष, कालसर्प, अज्ञात भय, शत्रु द्वारा किया या करवाया गया तंत्र का समाधान | नवग्रह | महामृत्युंजय | बगलामुखी | धूमावती | प्रत्यंगिरा | हरिद्रा गणपति | त्रिलोक्य मोहन गणपति | श्री सूक्तम | बटुक भैरव | स्वर्ण आकर्षण भैरव | हनुमद उपासना आदि | 

  
    
ब्लाॅग पर दिए गए तंत्र-मंत्रादि विद्याऐं गरुओं, अघोरियों, संतो व महात्मों से प्राप्त, स्वयं द्वारा किए गये साधना परिश्रम व अनुभव व विभिन्न प्रकार के तंत्र-मंत्र वेदादि ग्रन्थों से लिए गए हैं जिनमें (मन्त्रमहौदधि, रूद्रयामल, अथर्ववेद, महार्णवादि) हैं।
तंत्र-मंत्रो का प्रयोग किसी विशेष गुरू, विद्याओं में पारंगत, तंत्र-मंत्रादि की विशेष जानकारी रखने वालों से प्राप्त कर प्रयोगादि करें अन्यथा हानि संभव है।
शांति प्रयोग, धन प्राप्ति प्रयोगादि स्वयं अभ्यास कर व जानकारी जुटाकर की जा सकती है लेकिन षट्कर्म, तीव्र-प्रयोग, अभिचार तंत्र-मंत्र-यंत्र, प्रेतादि प्रयोग किसी अच्छे जानकार व पहुँचे हुए गुरूओं के सान्निध्य में ही करें। बिना पूर्ण जानकारी व अभ्यास के मैदान में न उतरें अन्यथा उससे प्राप्त क्षति के स्वयं अधिकारी होंगे।

जानकार व्यक्ति/साधक दिये गये तंत्र-मंत्र के प्रयोग कर लाभ उठायें।

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