माँ बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं | माँ बगलामुखी को 'वल्गा' भी कहा जाता है जिसका अर्थ है 'कृत्या' | माँ बगलामुखी की साधना शत्रु का स्तम्भन और शत्रु नाश के लिए किया जाता है | माँ बगलामुखी के साधक मुख पर तेज आ जाता है कोई शत्रु आँखें मिलाने से भी डरता है | माँ बगला के प्रयोग करते समय व्यक्ति बहुत घबराते हैं | सावधानी अत्यंत आवश्यक है | यह विद्या प्राण-वायु-मन का स्तम्भन कर देती है | त्रिपुर सुन्दरी के कूट मंत्रों के मिलाने से यह विद्या बगलसुन्दरी हो जाती है, जो शत्रु-नाश भी करती है तथा वैभव भी देती है |
महर्षि च्यवन ने इसी विद्या के प्रभाव से इंद्रा के वज्र को स्तंभित कर दिया था | आदिगुरु शंकराचार्य ने रेवा नदी का स्तम्भन इसी विद्या से किया था | इसी विद्या का कारण ब्रह्मा जी सृष्टि की संरचना में सफल हुए |
श्री बगला शक्ति तामसिक शक्ति न होकर, बल्कि अभिचारिक कृत्या से रक्षा ही इसकी प्रकृति है | इस संसार की सभी शक्ति मिलकर भी बगला शक्ति का सामना नहीं कर सकती | इस संसार में जितने भी तरह के दुःख और उत्पात हैं, उनसे रक्षा के लिए माँ बगलामुखी की साधना सर्व श्रेष्ठ है | शुक्ल यजुर्वेद में भी अभिचारकर्म की निवृत्ति में श्री बगलामुखी को ही सर्वोत्तम बताया है | शत्रु द्वारा कृत्या जो भूमि में गाड़ देते (गड़न्त) हैं, उन्हें नष्ट करने वाली महाशक्ति श्री बगलामुखी ही हैं |
देवी को वीर-रात्रि भी कहा जाता, क्युंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं बगला शक्ति के मृत्युन्जय - महादेव तथा भैरव स्वर्णाकर्षण हैं इसलिए देवी को सिद्ध-विद्या कहा जाता है | शत्रु के द्वारा कृत्या अभिचार किया गया हो, प्रेतादिक उपद्रव हो, तो श्री बगलामुखी विद्या का ही प्रयोग करना उचित होता है | बगला को मंगल ग्रह से सम्बंधित माना जाता है | शत्रु व राजकीय विवाद, मुकदमेबाजी में ये विद्या शीघ्र सिद्धि-प्रदा है | यदि शत्रु का प्रयोग या उपद्रव भारी हो तो अति तीव्र प्रयोग या मध्य मार्ग अपनाना चाहिए | मंत्र क्रम में निम्न विघ्न बन सकते हैं -
१. जप नियम पूर्वक नहीं हो सकते |
२. मंत्र जप में अधिक समय लगेगा |
३. मन-शरीर में बेचैनी अधिक होगी |
४. उठ कर भागने का मन करेगा |
५. समय पर साधन प्राप्त नहीं हो सकेंगे |
ऐसे में बगला विद्या के साथ भैरव, पक्षीराज, प्रत्यंगिरा, दुर्गा, धूमावती, कालरात्रि, तारा, काली के मंत्रो और कवच का प्रयोग करना उचित रहता है |
महर्षि च्यवन ने इसी विद्या के प्रभाव से इंद्रा के वज्र को स्तंभित कर दिया था | आदिगुरु शंकराचार्य ने रेवा नदी का स्तम्भन इसी विद्या से किया था | इसी विद्या का कारण ब्रह्मा जी सृष्टि की संरचना में सफल हुए |
श्री बगला शक्ति तामसिक शक्ति न होकर, बल्कि अभिचारिक कृत्या से रक्षा ही इसकी प्रकृति है | इस संसार की सभी शक्ति मिलकर भी बगला शक्ति का सामना नहीं कर सकती | इस संसार में जितने भी तरह के दुःख और उत्पात हैं, उनसे रक्षा के लिए माँ बगलामुखी की साधना सर्व श्रेष्ठ है | शुक्ल यजुर्वेद में भी अभिचारकर्म की निवृत्ति में श्री बगलामुखी को ही सर्वोत्तम बताया है | शत्रु द्वारा कृत्या जो भूमि में गाड़ देते (गड़न्त) हैं, उन्हें नष्ट करने वाली महाशक्ति श्री बगलामुखी ही हैं |
देवी को वीर-रात्रि भी कहा जाता, क्युंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं बगला शक्ति के मृत्युन्जय - महादेव तथा भैरव स्वर्णाकर्षण हैं इसलिए देवी को सिद्ध-विद्या कहा जाता है | शत्रु के द्वारा कृत्या अभिचार किया गया हो, प्रेतादिक उपद्रव हो, तो श्री बगलामुखी विद्या का ही प्रयोग करना उचित होता है | बगला को मंगल ग्रह से सम्बंधित माना जाता है | शत्रु व राजकीय विवाद, मुकदमेबाजी में ये विद्या शीघ्र सिद्धि-प्रदा है | यदि शत्रु का प्रयोग या उपद्रव भारी हो तो अति तीव्र प्रयोग या मध्य मार्ग अपनाना चाहिए | मंत्र क्रम में निम्न विघ्न बन सकते हैं -
१. जप नियम पूर्वक नहीं हो सकते |
२. मंत्र जप में अधिक समय लगेगा |
३. मन-शरीर में बेचैनी अधिक होगी |
४. उठ कर भागने का मन करेगा |
५. समय पर साधन प्राप्त नहीं हो सकेंगे |
ऐसे में बगला विद्या के साथ भैरव, पक्षीराज, प्रत्यंगिरा, दुर्गा, धूमावती, कालरात्रि, तारा, काली के मंत्रो और कवच का प्रयोग करना उचित रहता है |
उपासना
बगला उपासना पीले वस्त्र पहनकर, पीले आसन पर बैठकर करें | गंधार्चन में केसर व हल्दी का प्रयोग करें, स्वयं के पीला तिलक लगाएं | दीप-वर्तिका पीली बनाएं | पीत पुष्प चढ़ाएं, पीला नैवेद्य चढ़ावें | हल्दी से बनी हुई माला धारण करें और पीली हल्दी की माला का ही जाप में प्रयोग करें | आभाव में रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें या फिर सफ़ेद चन्दन की माला को पीला कर लेवें |
आम्नाये - मुख आम्नाये दक्षिणाम्नाये, उत्तर, उधर्व व उभयमनाये मंत्र भी हैं |
आचार - वामाचार मुख्या, दक्षिणाचार भी है |
कुल - यह श्रीकुल की अंग विद्या है |
शिव - इस विद्या के त्र्यम्बक शिव हैं |
भैरव - आनन्द भैरव |
गणेश - हरिद्रा गणेश, स्वर्णाकर्षण भैरव का प्रयोग भी उर्पयुक्त है |
यक्षिणी - विडालिका यक्षिणी |
बगला उत्पत्ति
एक बार समुद्र में राक्षस ने बहुत प्रलय किया, सभी देवी-देवता थक हर कर बैठ गए, भगवन विष्णु भी उसका सामना नहीं कर सके तो विष्णु जी सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप महा-त्रिपुर-सुंदरी की आराधना की तो श्री विद्या ने ही 'बगला' रूप में प्रकट होकर राक्षस का वध किया | मंगलवार युक्त चतुर्दशी, मकर कुल नक्षत्रों से युक्त वीर-रात्रि कही जाती है |
संक्षिप्त जानकारी
नाम - बगलामुखी, पीताम्बरा, ब्रह्मास्त्र विद्या | आम्नाये - मुख आम्नाये दक्षिणाम्नाये, उत्तर, उधर्व व उभयमनाये मंत्र भी हैं |
आचार - वामाचार मुख्या, दक्षिणाचार भी है |
कुल - यह श्रीकुल की अंग विद्या है |
शिव - इस विद्या के त्र्यम्बक शिव हैं |
भैरव - आनन्द भैरव |
गणेश - हरिद्रा गणेश, स्वर्णाकर्षण भैरव का प्रयोग भी उर्पयुक्त है |
यक्षिणी - विडालिका यक्षिणी |
आप सभी को मेरा सादर-प्रणाम
धन में रुकावट, स्वस्थ्य समस्या, शत्रु द्वारा लगातार परेशान करना, नवग्रह दोष, कालसर्प, अज्ञात भय, शत्रु द्वारा किया या करवाया गया तंत्र का समाधान | नवग्रह | महामृत्युंजय | बगलामुखी | धूमावती | प्रत्यंगिरा | हरिद्रा गणपति | त्रिलोक्य मोहन गणपति | श्री सूक्तम | बटुक भैरव | स्वर्ण आकर्षण भैरव | हनुमद उपासना आदि |
ब्लाॅग पर दिए गए तंत्र-मंत्रादि विद्याऐं गरुओं, अघोरियों, संतो व महात्मों से प्राप्त, स्वयं द्वारा किए गये साधना परिश्रम व अनुभव व विभिन्न प्रकार के तंत्र-मंत्र वेदादि ग्रन्थों से लिए गए हैं जिनमें (मन्त्रमहौदधि, रूद्रयामल, अथर्ववेद, महार्णवादि) हैं।
तंत्र-मंत्रो का प्रयोग किसी विशेष गुरू, विद्याओं में पारंगत, तंत्र-मंत्रादि की विशेष जानकारी रखने वालों से प्राप्त कर प्रयोगादि करें अन्यथा हानि संभव है।
शांति प्रयोग, धन प्राप्ति प्रयोगादि स्वयं अभ्यास कर व जानकारी जुटाकर की जा सकती है लेकिन षट्कर्म, तीव्र-प्रयोग, अभिचार तंत्र-मंत्र-यंत्र, प्रेतादि प्रयोग किसी अच्छे जानकार व पहुँचे हुए गुरूओं के सान्निध्य में ही करें। बिना पूर्ण जानकारी व अभ्यास के मैदान में न उतरें अन्यथा उससे प्राप्त क्षति के स्वयं अधिकारी होंगे।
जानकार व्यक्ति/साधक दिये गये तंत्र-मंत्र के प्रयोग कर लाभ उठायें।