NEW POST

|| श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् ||

भगवान श्री विष्णु के एक हजार नामों की महिमा अवर्णनीय है। इन नामों का संस्कृत रूप विष्णुसहस्रनाम के प्रतिरूप में विद्यमान है। विष्णुसहस्रना...

Sunday, 7 May 2017

|| श्री नायिका कवचम ||

।। श्री उन्मत्त-भैरव उवाच ।।
श्रृणु कल्याणि ! मद्-वाक्यं, कवचं देव-दुर्लभं। यक्षिणी-नायिकानां तु, संक्षेपात् सिद्धि-दायकं ।।
ज्ञान-मात्रेण देवशि ! सिद्धिमाप्नोति निश्चितं। यक्षिणि स्वयमायाति, कवच-ज्ञान-मात्रतः ।।
सर्वत्र दुर्लभं देवि ! डामरेषु प्रकाशितं। पठनात् धारणान्मर्त्यो, यक्षिणी-वशमानयेत् ।।
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीयक्षिणी-कवचस्य श्री गर्ग ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री अमुकी यक्षिणी देवता, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यासः- श्रीगर्ग ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्री रतिप्रिया यक्षिणी देवतायै नमः हृदि, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
।। मूल पाठ ।। 
शिरो मे यक्षिणी पातु, ललाटं यक्ष-कन्यका। 
मुखं श्री धनदा पातु, कर्णौ मे कुल-नायिका ।।
चक्षुषी वरदा पातु, नासिकां भक्त-वत्सला। 
केशाग्रं पिंगला पातु, धनदा श्रीमहेश्वरी ।।
स्कन्धौ कुलालपा पातु, गलं मे कमलानना। 
किरातिनी सदा पातु, भुज-युग्मं जटेश्वरी ।।
विकृतास्या सदा पातु, महा-वज्र-प्रिया मम। 
अस्त्र-हस्ता पातु नित्यं, पृष्ठमुदर-देशकम् ।।
भेरुण्डा माकरी देवी, हृदयं पातु सर्वदा। 
अलंकारान्विता पातु, नितम्ब-स्थलं दया ।।
धार्मिका गुह्यदेशं मे, पाद-युग्मं सुरांगना। 
शून्यागारे सदा पातु, मन्त्र-माता-स्वरुपिणी ।।
निष्कलंका सदा पातु, चाम्बुवत्यखिलं तनुं। 
प्रान्तरे धनदा पातु, निज-बीज-प्रकाशिनी ।।
लक्ष्मी-बीजात्मिका पातु, खड्ग-हस्ता श्मशानके। 
शून्यागारे नदी-तीरे, महा-यक्षेश-कन्यका।।
पातु मां वरदाख्या मे, सर्वांगं पातु मोहिनी। 
महा-संकट-मध्ये तु, संग्रामे रिपु-सञ्चये ।।
क्रोध-रुपा सदा पातु, महा-देव निषेविका। 
सर्वत्र सर्वदा पातु, भवानी कुल-दायिका ।।
इत्येतत् कवचं देवि ! महा-यक्षिणी-प्रीतिवं। 
अस्यापि स्मरणादेव, राजत्वं लभतेऽचिरात्।।
पञ्च-वर्ष-सहस्राणि, स्थिरो भवति भू-तले। 
वेद-ज्ञानी सर्व-शास्त्र-वेत्ता भवति निश्चितम्।
अरण्ये सिद्धिमाप्नोति, महा-कवच-पाठतः। 
यक्षिणी कुल-विद्या च, समायाति सु-सिद्धदा।।
अणिमा-लघिमा-प्राप्तिः सुख-सिद्धि-फलं लभेत्। 
पठित्वा धारयित्वा च, निर्जनेऽरण्यमन्तरे।।
स्थित्वा जपेल्लक्ष-मन्त्र मिष्ट-सिद्धिं लभेन्निशि। 
भार्या भवति सा देवी, महा-कवच-पाठतः।।
ग्रहणादेव सिद्धिः स्यान्, नात्र कार्या विचारणा ।।

।। हरि ॐ तत्सत ।।

Popular Posts