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|| श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् ||

भगवान श्री विष्णु के एक हजार नामों की महिमा अवर्णनीय है। इन नामों का संस्कृत रूप विष्णुसहस्रनाम के प्रतिरूप में विद्यमान है। विष्णुसहस्रना...

Thursday, 11 May 2017

|| श्री स्वर्णाकर्षण भैरव प्रयोग ||

विनियोग- ऊँ अस्य श्री स्वर्णा कर्षण भैरव मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः पक्तिश् छन्दः हरिहर ब्रह्मात्मक, स्वर्णाकर्षण भैरव देवता, हृ्रीं बीजम्, सः शक्ति, ओम कीलकं, मम दारिद्रय नाशर्थे स्वर्णा राशि प्राप्तार्थे, स्वर्णाकर्षण भैरव प्रसनार्थे जाये विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास- 
ब्रह्म ऋष्ये नमः शिरसि। 
पन्तिश्छन्दसे नमः मुखे।
स्वर्णा कर्षण दैवताय नमः हृदि। 
ह्रीं बीजाय नमः गुहो।
सः शक्तिये नमः पादयोः। 
ओम कीलकाय नमः नाभौ। 
विनियोगाय नमः सर्वाङेग।

कराङग न्यास - 
ओम् ऐं ह्रीं श्री अपादु द्धारणाय अंगुष्ठाभ्यां नमः (हृदयाय नमः)
ओम् ह्रीं ह्रीं हूं अजामिल वद्धाय तर्जनीभ्यां नमः (शिरसे स्वाहा)
ओम् लोकेश्वराय मध्यमाभ्यां नमः (शिखायै वषट्)
ओम् स्वर्णा कर्षण भैरवाय अनामिकाभ्यां नमः। (कवचाय हुम्)
ओम् महा भैरवाय नमः श्रीं ह्रीं ऐ कर तल कर पृष्ठाभ्यां नमः (अस्त्राय फट्)

ध्यान:-
पीत वर्ण चतुर्वाहुं त्रिनेत्रं पीतवास सम्।
अक्ष्यं स्वर्णा माणिक्यं - तडित पूरित पात्रकम्।।
अभिलषितं महाशूल चामरं तोमरोद्वहम।
स्र्वाभरण सम्पन्नं मुक्ता हाराय शोभितम्।।
मदोन्मन्तं सुखासीनं भक्तानाम् च वर प्रदम्।
सततं चिन्तयेद् देवं भैरवं सर्व सिद्धिदम्।।
पारिजात द्रमुकान्तार स्थिते मणि मण्डये।
सिहासन गंत ध्यायेद भैरवं स्वर्णा दायकम्।।
गांगेय पात्रं डमरू त्रिशूलं वरं करैः संदघतं त्रिनेत्रं।
देव्या युतं तप्त स्वर्णावर्ण स्वर्णाकृतिः भैरव माश्रयामि।।

जप मंत्र:-

ऊँ ऐं क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं हूं सः वं आपदुद्धारणाय अजामिल व्द्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय मम दारिद्रय विद्वेषजाय ऊँ ह्रीं महा भैरवाय नमः।

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