विनियोगः-ओं अस्य श्री सोम मंत्रस्य भृगु ऋषिः, पक्तिश् छन्दः, सोमो देवता, स्वौं बीजम्, नमः शक्तिः, श्री सोम देवता प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यासः-
ओं भृगु ऋषये नमः शिरसि।
ओं पक्तिश्छन्दसे नमः मुखे।
ओं सोमो देवताये नमः हृदये।
ओं स्वौं बीजाय नमः गुहये।
ओं नमः शक्तये नमः पादयो।
करान्यास-
ओं सां अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
ओं सीं तर्जनीभ्याम् नमः।
ओं सूं मध्यमाभ्याम् नमः।
ओं सैं अनामिकाभ्याम् नमः।
ओं सौं कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
ओं सः करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः।
हृदयादिन्यासः-
ओं सां हृदयाय नमः।
ओं सीं शिरसे स्वाहा।
ओं सूं शिखायै वषट्।
ओं सैं कवचाय हुम्।
ओं सौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ओं सः अस्त्राय फट्।
ध्यान्ः-
ओं कर्पूरस्फटिकवदातमनिशं पूर्णेन्दूबिम्बननं, मुक्तादामविभूषितेन वपुषा निर्मूलयन्तं तमः।
हस्ताभ्यां कुमुद वरंच दधतं नीलालकोदमासितं, स्वीयांकस्थमृगोदिताश्रयगुणं सोमं सुधाब्धिं भजे।।
फिर मानसोपचार करें।
मंत्रः-ओं स्वौं सोमाय नमः। अथवा सौं सोमाय नमः।
ऋष्यादिन्यासः-
ओं भृगु ऋषये नमः शिरसि।
ओं पक्तिश्छन्दसे नमः मुखे।
ओं सोमो देवताये नमः हृदये।
ओं स्वौं बीजाय नमः गुहये।
ओं नमः शक्तये नमः पादयो।
करान्यास-
ओं सां अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
ओं सीं तर्जनीभ्याम् नमः।
ओं सूं मध्यमाभ्याम् नमः।
ओं सैं अनामिकाभ्याम् नमः।
ओं सौं कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
ओं सः करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः।
हृदयादिन्यासः-
ओं सां हृदयाय नमः।
ओं सीं शिरसे स्वाहा।
ओं सूं शिखायै वषट्।
ओं सैं कवचाय हुम्।
ओं सौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ओं सः अस्त्राय फट्।
ध्यान्ः-
ओं कर्पूरस्फटिकवदातमनिशं पूर्णेन्दूबिम्बननं, मुक्तादामविभूषितेन वपुषा निर्मूलयन्तं तमः।
हस्ताभ्यां कुमुद वरंच दधतं नीलालकोदमासितं, स्वीयांकस्थमृगोदिताश्रयगुणं सोमं सुधाब्धिं भजे।।
फिर मानसोपचार करें।
मंत्रः-ओं स्वौं सोमाय नमः। अथवा सौं सोमाय नमः।