यह माला मंत्र विशेष फलदायी है। अन्य मंत्रों में इसका सम्पुट लगा देने से यह और भी अधिक प्रभावी हो जाता है। यदि कोई व्यक्ति शत्रु बन्धन, कृत्या से पीड़ित, राज-बन्धन, ग्रह बन्धन, ऋण बन्धन से पीड़ित हो तो इस माला मन्त्र में कामना मन्त्र जोड़कर प्रयोग करना चाहिए।
विनियोगः-ओं अस्य श्री प्रत्यंगिरा माला मंत्रस्य ब्रहमा ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री प्रत्यंगिरा देवता, ओं बीजं, ह्रीं शक्तिः, कृत्या नाशने विनियोगः।
षडंगन्यासः-
ओं ह्रां हृदयाय नमः।
ओं ह्रीं शिरसे स्वाहा।
ओं ह्रूं शिखायै वषट्।
ओं ह्रैं कवचाय हुम्।
ओं ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ओं ह्रः अस्त्राय फट्।
ध्यानः-
सिंहारूढ़ाअति कृष्णं त्रिभुवन-भयकृद् रूपमुग्रं वहन्ती।
ज्वालावक्त्रा वसाना नववसन युगं नीलमायाभ कांतिः।। 1 ।।
शूलं खड्गं वहन्ती निजकरयुगले भक्तरक्षैक रक्ष।
सेयं प्रत्यंगिरा संक्षपयतु रिपुभिनिर्मित वोअभिचाराम्।। 2 ।।
मंत्रः-
ओं ह्रीं नमः कृष्णवाससे स्तुते विश्वसहस्त्र हिंसिनी सहस्रावने महाबले अपराजिते प्रत्यंगिरे परसैन्य परकर्म विधवंसिनी परमंत्रोत्सादिनी सर्वभूतदमनी सर्वदेवान् बंध-बंध सर्वविद्यां छिन्धि-छिन्धि क्षोभय-क्षोभय पर-यंत्राणि स्फोटय-स्फोटय सर्वश्रृंखला त्रोटय-त्रोटय ज्वलज्जवाला जिव्हे करालवदने प्रत्यंगिरे ह्रीं नमः।
नोटः-उपरोक्त मंत्र का दस हजार जप कर तिल एवं राई से होम करना चाहिए। फिर प्रयोग समय एक माला का विधान है।
विनियोगः-ओं अस्य श्री प्रत्यंगिरा माला मंत्रस्य ब्रहमा ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री प्रत्यंगिरा देवता, ओं बीजं, ह्रीं शक्तिः, कृत्या नाशने विनियोगः।
षडंगन्यासः-
ओं ह्रां हृदयाय नमः।
ओं ह्रीं शिरसे स्वाहा।
ओं ह्रूं शिखायै वषट्।
ओं ह्रैं कवचाय हुम्।
ओं ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ओं ह्रः अस्त्राय फट्।
ध्यानः-
सिंहारूढ़ाअति कृष्णं त्रिभुवन-भयकृद् रूपमुग्रं वहन्ती।
ज्वालावक्त्रा वसाना नववसन युगं नीलमायाभ कांतिः।। 1 ।।
शूलं खड्गं वहन्ती निजकरयुगले भक्तरक्षैक रक्ष।
सेयं प्रत्यंगिरा संक्षपयतु रिपुभिनिर्मित वोअभिचाराम्।। 2 ।।
मंत्रः-
ओं ह्रीं नमः कृष्णवाससे स्तुते विश्वसहस्त्र हिंसिनी सहस्रावने महाबले अपराजिते प्रत्यंगिरे परसैन्य परकर्म विधवंसिनी परमंत्रोत्सादिनी सर्वभूतदमनी सर्वदेवान् बंध-बंध सर्वविद्यां छिन्धि-छिन्धि क्षोभय-क्षोभय पर-यंत्राणि स्फोटय-स्फोटय सर्वश्रृंखला त्रोटय-त्रोटय ज्वलज्जवाला जिव्हे करालवदने प्रत्यंगिरे ह्रीं नमः।
नोटः-उपरोक्त मंत्र का दस हजार जप कर तिल एवं राई से होम करना चाहिए। फिर प्रयोग समय एक माला का विधान है।