एकचक्रो रथो यस्य दिव्यः कनकभूषणः ।
स मे भवतु सुप्रीतः पञ्चहस्तो दिवाकरः ॥ १॥
आदित्यः प्रथमं नामं द्वितीयं तु दिवाकरः ।
तृतीयं भास्करः प्रोक्तं चतुर्थं तु प्रभाकरः ॥ २॥
पञ्चमं तु सहस्रांशुः षष्ठं चैव त्रिलोचनः ।
सप्तमं हरिदश्वश्च अष्टमं तु विभावसुः ॥ ३॥
नवमं दिनकृत्प्रोक्तं दशमं द्वादशात्मकः ।
एकादशं त्रयीमूर्तिर्द्वादशं सूर्य एव च ॥ ४॥
द्वादशादित्यनामानि प्रातःकाले पठेन्नरः ।
दुःखप्रणाशनं चैव सर्वदुःखं च नश्यति ॥ ५॥
इति आदित्यद्वादशनामस्तोत्रं समाप्तम् ॥
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|| श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् ||
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Thursday, 11 May 2017
॥ आदित्यद्वादशनामस्तोत्रम् ॥
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