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|| श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् ||

भगवान श्री विष्णु के एक हजार नामों की महिमा अवर्णनीय है। इन नामों का संस्कृत रूप विष्णुसहस्रनाम के प्रतिरूप में विद्यमान है। विष्णुसहस्रना...

Saturday, 3 June 2017

|| धर्मराज मन्त्र साधना ||

धर्मराज मन्त्र का उद्धार  - प्रणव (ॐ), अङ्‌कुश (क्रों), हृल्लेखा (ह्रीं), पाश (आं), कं जलबीज (वं), जो भौतिक ए और बिन्दु से युक्त हो अर्थात् (वैं) फिर ‘वैवस्वताय धर्म; पद के बाद ‘राजा’ पद तथा प्रभञ्जन (य) फिर ‘भक्तानुग्रह’ शब्द के बाद कृते नमः’ जोडने से २४ अक्षरों का धर्मराजमन्त्र निष्पन्न हो जाता है |

मन्त्र का स्वरुप - ॐ क्रों ह्रीं आं वैं वैवस्वताय धर्मराजाय भक्तानुग्रकृते नमः (२४) |

विनियोग - अस्य श्रीधर्मराजमन्त्रस्य वामदेवऋषिर्गायत्रीच्छन्दः शमनादेवता ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

षडङ्गन्यास -
ॐ क्रों ह्रीं हृदाय नमः,   
आं वैं शिरसे स्वाहा,
वैवस्वताय शिखायै वषट्,   
धर्मराजाय कवचाय हुम्,
भक्तानुग्रकृते नेत्रत्रयाय वौषट्,   
नमः अस्त्राय फट् ।

ध्यान - जिन सूर्यपुत्र का सजलमेघ के समान श्याम शरीर है, जो पुण्यात्माओं को सौम्य रुप में तथा पापियों को दुःखदायक भयानक रुप में दिखाई पडते हैं, जो ऐश्वर्य सम्पन्न दक्षिणादिशा के अधिपति, महिष पर सवारी करने वाले, अनेक आभूषणों से अलंकृत संयमिनी नगरी के तथा पितृगणों के स्वामी, प्राणियों का नियमन करने वाले तथा दण्ड धारण करने वाले हैं इस प्रकार के धर्मराज का ध्यान करना चाहिए |

अभ्यास करने से सिद्ध हुआ यह मन्त्र साधक की सारी आपत्तियों का नाश करता है, नरक जाने से रोकता है तथा शत्रुभय का निवर्तक है |


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