चित्रगुप्त के मन्त्र का उद्धार - प्रणव (ॐ), फिर हृद् (नमः), फिर ‘विचित्राय धर्म’ लेखकाय यमवाहिकाधिकारिणे’ पद का उच्चारण करना चाहिए । फिर क्षुधा (य), तन्द्री (म), क्रिया (ल), उत्कारी (ब), वहिन (र) एवं (य) इन वर्णों में अर्घीश एवं इन्दु लगाने से निष्पन्न र्य्म्ल्व्यूं, फिर ‘जन्म सम्पत्लयं’ पद का उच्चारण कर २ बार कथय और अन्त में ‘स्वाहा’ जोडने से ३८ अक्षरों का चित्रगुप्त मन्त्र बनता है जो सारे पापों एवं दूःखों को दूर करने वाला है ॥
मन्त्र का स्वरुप - ॐ नमः विचित्राय धर्मलेखकाय यमवाहिकाधिकारिणे र्य्म्ल्ब्यूं जन्मसंपत्प्रलयं कथय कथय स्वाहा (३८) ।
विनियोग पूर्ववत् है केवल ‘धर्मराजमन्त्रस्य’ के स्थान पर ‘चित्रगुप्तमन्त्रस्य’ कहना चाहिए ।
षडङ्गन्यास विधि -
ॐ नमः विचित्राय हृदयाय नमः,
धर्मलेखकाय शिरसे स्वाहा
यमवाहिकाधिकारिणे शिखायै वषट्
र्य्म्ल्ब्यूं जन्मसंपत्प्रलयं कवचाय हुम्
कथयं कथय नेत्रत्रयाय वौषट् स्वाहा अस्त्राय फट् ॥
ध्यान - किरीट के प्रकाश से उज्ज्वल तथा वस्त्र एवं आभूषण से मनोहर, चन्द्रिका के समान प्रसन्न मुख वाले, विचित्र आसन पर बैठ कर सारे मनुष्यों के पाप और पुण्यों को बही के पत्र पर लिखते हुये, यमराज के सखा चित्रगुप्त का मैं भजन करता हूँ ॥
इस सिद्धमन्त्र का जप करने वाले मनुष्यों से प्रसन्न हुये चित्रगुप्त केवल उनके पुण्यों का ही लेखा जोखा करते हैं पापो का नहीं ॥