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|| श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् ||

भगवान श्री विष्णु के एक हजार नामों की महिमा अवर्णनीय है। इन नामों का संस्कृत रूप विष्णुसहस्रनाम के प्रतिरूप में विद्यमान है। विष्णुसहस्रना...

Saturday, 3 June 2017

|| आसुरी विद्या साधना ||

मन्त्र का स्वरुप - ॐ कटुके कटुकपत्रे सुभगे आसुरिरक्ते रक्तवाससे अथर्वणस्य दुहिते अघौरे अघोरकर्मकारिके अमुकस्य गतिं दह दह उपविष्टस्य गुदं दह दह सुप्तस्य मनो दह दह प्रबुद्धस्य हृदयं दह दह हन हन पच पच तावद्‌दह तावत्पच यावन् मे वशमायाति हुं फट्‍ स्वाहा । (आसुरी दुर्गा की संज्ञा है) ॥

विनियोग एवं षडङ्गन्यास - इस मन्त्र के अंगिरा ऋषि हैं, विराट्‍ छन्द तथा आसुरी दुर्गा देवता है, प्रणव बीज तथा स्वाहा शक्ति ॥

विनियोग विधि - ॐ अस्य आसुरीमन्त्रस्य अंगिरा ऋषिर्विराट्‍ छन्दः आसुरीदुर्गादेवता ॐ बीजं स्वाहा शक्तिरात्मनोऽभीष्टसिद्ध्यर्थ जपे विनियोगः ॥

ऋष्यादिन्यास -  
ॐ अङ्गिरसे ऋषये नमः, शिरसि,
ॐ विराट्‍ छन्दसे नमः मुखे,        
ॐ आसुरीदुर्गादेवतायै नमः हृदि,
ॐ ॐ बीजाय नमः गुह्ये        
ॐ स्वाहा शक्तये नमः पादयोः

षड्ङन्यास -
ॐ कटुके कटुकपत्रे हुं फट्‍ स्वाहा हृदाय नमः,
सुभगे आसुरि हुं फट्‍ स्वा शिरसे स्वाहा,
रक्तेरक्तवाससे हुं फट्‍ स्वाहा शिखायै वषट्,
अथर्वणस्य दुहिते हुं फट्‍ स्वाहा कवचाय हुम्,
अघोरे अघोरकर्मकारिके हुं फट्‍ स्वाहा नेत्रत्रयाय वौषट्,
अमुकस्यं गति ... यावन्मेवशमायाति हुँ फट्‍ स्वाहा, अस्त्राय फट् ॥

अब अथर्वापुत्री भगवती आसुरी दुर्गा का ध्यान कहते हैं -
जिनके शरीर की आभा शरत्कालीन चन्द्रमा के समान शुभ है, अपने कमल सदृश हाथों में जिन्होंने क्रमशः वर, अभय, शूल एवं अंकुश धारण किया है । ऐसी कमलासन पर विराजमान, आभूषणों एवं वस्त्रों से अलंकृत, सर्प का यज्ञोपवीत धारण करने वाली अथर्वा की पुत्री भगवती आसुरी दुर्गा मुझे प्रसन्न रखें ॥

इस मन्त्र का दश हजार जप करना चाहिए । तदनन्तर घी मिश्रित राई से दशांश होम करने पर यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है । (जयादि शक्ति युक्त पीठ पर दुर्गा की एवं दिशाओं में सायुध शशक्तिक इन्द्रादि की पूजा करनी चाहिए) ॥

प्रयोग -  
अब काम्य प्रयोग का विधान कहते हैं - राई के पञ्चाङ्गो (जड शाखा पत्र पुष्प एवं फलों) को लेकर साधक मूलमन्त्र से उसे १०० बार अभिमन्त्रित करे, तदनन्तर उससे स्वयं को धूपित करे तो जो व्यक्ति उसे सूँघता है वही वश में हो जाता है । मधु युक्त राई की उक्त मन्त्र से एक हजार आहुति देकर साधक जगत् को अपने वश में कर सकता है ॥

स्त्री या पुरुष जिसे वश में करना हो उसकी राई की प्रतिमा बना कर पुरुष के दाहिने पैर के मस्तक तक, स्त्री के बायें पैर से मष्टक तक, तलवार से १०८ टुकडे कर, प्रतिदिन विधिवत् राई की लकडी से प्रज्वलित अग्नि में निरन्तर एक सप्ताह पर्यन्त इस मन्त्र से हवन करे, तो शत्रु भी जीवन भर स्वयं साधक का दास बन जाता है । स्त्री को वश में करने के लिए साध्य में (देवदत्तस्य उपविष्टस्य के स्थान पर देवदत्तायाः उपविष्टायाः इसी प्रकार देवदत्तायाः सुदामा आदि) शब्दों को ऊह कर उच्चारण करना चाहिए ॥

सरसों का तेल तथा निम्ब पत्र मिला कर राई से शत्रु का नाम लगा कर मूलमन्त्र से होम करने से शत्रु को बुखार आ जाता है ॥

इसी प्रकार नमक मिला कर राई का होम करने से शत्रु का शरीर फटने लगता है । आक के दूध में राई को मिश्रित कर होम करने से शत्रु अन्धा हो जाता है ॥

पलाश की लकडी से प्रज्वलित अग्नि में एक सप्ताह तक घी मिश्रित राई का १०८ बार होम करने से साधक ब्राह्मण को, गुडमिश्रित राई का होम करने से क्षत्रिय को, दधिमिश्रित राई के होम से वैश्य को तथा नमक मिली राई के होम से शूद्र को वश में कर लेता है । मधु सहित राई की समिधाओं का होम करने से व्यक्ति को जमीन में गडा हुआ खजाना प्राप्त होता है ॥

जलपूर्ण कलश में राई के पत्ते डाल कर उस पर आसुरी देवी का आवाहन एवं पूजन कर साधक मूलमन्त्र से उसे १०० बार अभिमन्त्रित करे । फिर उस जल से साध्य व्यक्ति का अभिषेक करे तो साध्य की दरिद्रता, आपत्ति, रोग एवं उपद्रव उसे छोडकर दूर भाग जाते है ॥

राई का फूल, प्रियंगु, नागकेशर, मैनसिल एवं तगार इन सबको पीसकर मूलमन्त्र से १०८ बार अभिमन्त्रित करे । फिर उस चन्दन को साध्य व्यक्ति के मस्तक पर लगा दे तो साधक उसे अपने वश में कर लेता है ॥

नीम की लकडी ल्से प्रज्वलित अग्नि में एक सप्ताह तक दक्षिणाभिमुख सरसोम मिश्रित राई की प्रतिदिन १०० आहुतियाँ देकर साधक अपने शत्रुओं को यमलोक का अथिथि बना देता है ॥

यदि इस आसुरी विद्या की विधिवत् उपासना कर ली जाय तो क्रुद्ध राजा समस्त शत्रु किम बहुना क्रुद्ध काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड सकता है ॥


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