विनियोगः-ओं अस्य श्री केतु मंत्रस्य ब्रहमा ऋषिः, पंक्तिश्छन्दः, केतु देवता, कें बीजम्, वेशः शक्तिः, श्री केतु देवता प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यासः-
ओं ब्रहमा ऋषये नमः शिरसि।
ओं पंक्तिश्छन्दसे नमः मुखे।
ओं केतु देवताये नमः हृदये।
ओं कें बीजाय नमः गुहये।
ओं वेशः शक्तये नमः पादयो।
करान्यास-
ओं कें अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
ओं कें तर्जनीभ्याम् नमः।
ओं कें मध्यमाभ्याम् नमः।
ओं कें अनामिकाभ्याम् नमः।
ओं कें कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
ओं कें करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः।
हृदयादिन्यासः-
ओं कें हृदयाय नमः।
ओं कें शिरसे स्वाहा।
ओं कें शिखायै वषट्।
ओं कें कवचाय हुम्।
ओं कें नेत्रत्रयाय वौषट्।
ओं कें अस्त्राय फट्।
ध्यान्ः-
ओं वन्दे केतुं कृष्णवर्णं कृष्णवस्त्रविभूषणम्।
वामोरून्यस्ततद्धस्तं साभयेतरपाणिकम्।।
फिर मानसोपचार करें।
मंत्रः-ओं कें केतवे नमः।
ऋष्यादिन्यासः-
ओं ब्रहमा ऋषये नमः शिरसि।
ओं पंक्तिश्छन्दसे नमः मुखे।
ओं केतु देवताये नमः हृदये।
ओं कें बीजाय नमः गुहये।
ओं वेशः शक्तये नमः पादयो।
करान्यास-
ओं कें अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
ओं कें तर्जनीभ्याम् नमः।
ओं कें मध्यमाभ्याम् नमः।
ओं कें अनामिकाभ्याम् नमः।
ओं कें कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
ओं कें करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः।
हृदयादिन्यासः-
ओं कें हृदयाय नमः।
ओं कें शिरसे स्वाहा।
ओं कें शिखायै वषट्।
ओं कें कवचाय हुम्।
ओं कें नेत्रत्रयाय वौषट्।
ओं कें अस्त्राय फट्।
ध्यान्ः-
ओं वन्दे केतुं कृष्णवर्णं कृष्णवस्त्रविभूषणम्।
वामोरून्यस्ततद्धस्तं साभयेतरपाणिकम्।।
फिर मानसोपचार करें।
मंत्रः-ओं कें केतवे नमः।