विनियोगः-ओं अस्य श्री राहु मंत्रस्य ब्रहमा ऋषिः, पंक्तिश्छन्दः, राहु देवता, रां बीजम्, वेशः शक्तिः, श्री राहु देवता प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यासः-
ओं ब्रहमा ऋषये नमः शिरसि।
ओं पंक्तिश्छन्दसे नमः मुखे।
ओं राहु देवताये नमः हृदये।
ओं रां बीजाय नमः गुहये।
ओं वेशः शक्तये नमः पादयो।
करान्यास-
ओं रां अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
ओं रां तर्जनीभ्याम् नमः।
ओं रां मध्यमाभ्याम् नमः।
ओं रां अनामिकाभ्याम् नमः।
ओं रां कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
ओं रां करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः।
हृदयादिन्यासः-
ओं रां हृदयाय नमः।
ओं रां शिरसे स्वाहा।
ओं रां शिखायै वषट्।
ओं रां कवचाय हुम्।
ओं रां नेत्रत्रयाय वौषट्।
ओं रां अस्त्राय फट्।
ध्यान्ः-
वन्दे राहुं धूम्रवर्णं अर्धकायं कृतांजलिम्।
विकृतास्यं रक्तनेत्रं धूम्रालंकारमन्वहम्।।
फिर मानसोपचार करें।
मंत्रः-ओं रां राहुवे नमः।
ऋष्यादिन्यासः-
ओं ब्रहमा ऋषये नमः शिरसि।
ओं पंक्तिश्छन्दसे नमः मुखे।
ओं राहु देवताये नमः हृदये।
ओं रां बीजाय नमः गुहये।
ओं वेशः शक्तये नमः पादयो।
करान्यास-
ओं रां अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
ओं रां तर्जनीभ्याम् नमः।
ओं रां मध्यमाभ्याम् नमः।
ओं रां अनामिकाभ्याम् नमः।
ओं रां कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
ओं रां करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः।
हृदयादिन्यासः-
ओं रां हृदयाय नमः।
ओं रां शिरसे स्वाहा।
ओं रां शिखायै वषट्।
ओं रां कवचाय हुम्।
ओं रां नेत्रत्रयाय वौषट्।
ओं रां अस्त्राय फट्।
ध्यान्ः-
वन्दे राहुं धूम्रवर्णं अर्धकायं कृतांजलिम्।
विकृतास्यं रक्तनेत्रं धूम्रालंकारमन्वहम्।।
फिर मानसोपचार करें।
मंत्रः-ओं रां राहुवे नमः।