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|| श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् ||

भगवान श्री विष्णु के एक हजार नामों की महिमा अवर्णनीय है। इन नामों का संस्कृत रूप विष्णुसहस्रनाम के प्रतिरूप में विद्यमान है। विष्णुसहस्रना...

Thursday, 3 January 2019

||अमृतेश्वरी मंत्र प्रयोगः||


पुरुष देवता के साथ उसकी शक्ति देवता का पूजन करने से पूर्ण अंग होता है स्त्री देवता के साथ पुरुष देवता का भी पूजन -अर्चन भी आवयश्क है|

यदि पुरुष देवता के एक लछ जप किये जाये तो उसके दशांश जप (दस हजार )उसकी स्त्री देवता के करने अवयस्क है अतः मृत्युञ्य प्रयोग के साथ अमृतेश्वरी  देवी का पूजन अर्चन व जप किया जाय तभी पूर्णाङ्ग होगा | 

श्री भुनेश्वरी महास्तोत्र मेश्रीपृथ्वीधराचार्य ने मंत्रोद्धार इस प्रकार किया है -

श्री मृत्युञ्जयनामधैय भगवच्चैतन्य चन्द्रात्मिके ह्रींकारी प्रथमा तमांसि दलय त्वं हंससञ्जीविनी | 
जीवं प्राणाविजृम्भमाण ह्रदयग्रन्थिस्थितं मे कुरु त्वां सेवैनिजबोधलाभरभसा स्वहा भजामीश्वरीम || 

मन्त्रं - ॐ श्री ह्रीं मृत्युंजय भगवति चैतन्य चन्द्रे हंससञ्जीवनी स्वाहा | 


ध्यानम 
जाग्रद बोधसूधामयूखनीचयेराप्लाव्य सर्वदिशो  ,
यस्याः कापि कला कलंकरहिता षट्चक्रमाक्रामाति | 
दैन्यध्वानतविदारणैकचतुरा वाचं परां तन्वति ,
या नित्या भुवनेश्वरी विहरतां हंसीव मनमानसे || 

यही पृथ्वीधराचार्य ने यन्त्रोद्धार दिया -
व्योमेनदो रसनार्णकर्णीकमचां द्वन्द्वैस्फुरत्केसर  ,
पत्रान्तगर्त पज्चवर्ग यशलानारदि त्रिवर्ग  क्रमात || 
आशा स्वस्त्रीषु लानतलाड़लिजा क्षोणीपुरैणाव्रतं ,
वर्णाबज शिरसि स्थितं विषगद प्रध्वसि मृत्युज्जयेत || 

उपरोक्त यन्त्र मे वर्णादि लिखकर पूजाकर धारण करने से शुभ रहे | 


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