विनयोगः- ॐ अस्य श्री शरंभ शालुव पक्षिराजाख्य कवचस्य सदाशिव ऋषिः, बृहस्पति छन्दः, श्री शरभेश्वरो देवताः, प्रणवो बीजं, प्रकृतिः शक्तिः, अव्यक्त कीलंक चतुर्वर्ग फल प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः |
ऋष्यादिन्यासः-
शिरसि सदाशिवाय ऋषये नमः |
मुखे बृहस्पत्यै छन्दसे नमः |
हृदि श्री शरभेश्वराय दैवतायै नमः |
गुह्ये ॐ बीजाय नमः|
पादयोः प्रकृत्यै शक्तये नमः |
नाभौ अव्यत्क कीलकाय नमः |
सर्वाङ्गे चतुर्वर्ग फल प्राप्तयर्थे विनियोगाय नमः |
करन्यास एवं अंगन्यासः - खां,खीं,खू,खैं,खौ,खः,से पूर्व की भाँति करे |
ध्यानम :-
रत्नाभं सुप्रसन्नं त्रिनयनंमृतोंमत्त भूषाभिरामम |
करण्यामबोधिमिषम वरदामभयदं चंद्ररेखावतंशम ||
शंखध्मातखिलाशा प्रतिहतविधिना भासमानात्मभासम |
सर्वेशं शालुवेशम प्रणतभयहरं पक्षिराजं नमामि ||
मानस पूजन पूर्व की भांति करे |
|| श्री महारुद्राय नमः ||
ॐ श्री शिवः पुरतः पातु मायाधीशस्तु पृष्ठतः |
पिनाकी दक्षिणं पातु वामपार्श्व महेश्वरः || १ ||
शिखांग्र पातु में शम्भु निरटिलम पातु शंकरः |
ईश्वरो वदनं पातु भ्रुवोर्मध्यम पुरान्तकः || २ ||
भ्रुवो पातु मम स्थाणुः कपर्दी पातु लोचने |
शर्वो में श्रोत्रयोः पातु वागीशः पातु लम्बिकाम || ३ ||
नसयोर्मे वृषारुढो नासाग्रम वृषभध्वज : |
स्मरारिः पातु में तालवेरोस्टियोर्भक्त वत्सलः || ४ ||
जिह्रा मम सदा पातु सर्व विधा प्रदायकः |
पातु मृत्युञ्ज पातु भुतराट || ५ ||
परमेशः कपोलौ में त्रिकं पातु कपालभृत |
कण्ठं पशुपतिः पातु शूली पातु हनू मम || ६ ||
स्कन्धद्वयं हरः पातु धूर्जटिः पातु में भुजौ |
भुजद्वयं महादेवं ईशानो मम कर्पुरम || ७ ||
मुष्टिसन्धि जगत्राथ प्रकोष्ठो चन्द्रशेखरः |
मणिबंन्ध त्रिनेत्री में भीमः पातु करसतलम || ८ ||
करपृष्ठ मृड पातु रुद्रोडगुष्टद्वयं कनिष्टके
उमासहायस्तर्जन्यौ भर्गे में पातु मध्यमे|| ९| |
अनमिके करालस्य कालकण्ठः कनिष्टके
गंगाधरोड़गुल र्वाण्य प्रमेयो नखनि में || १० ||
ईशानःपातुदोर्मूलमेदो में स्वसितदोड़वतु |
वक्षस्तत्पुर पातु कुक्षो दक्षाध्वरान्तकः || ११ ||
अधोरो ह्र्दय पातु वामदेव स्तनद्वयम |
भालद्रक जठंर पातु नाभिं नारायण प्रियः || १२ ||
कुक्षिं प्रजाकरः पातु कुक्षिं पार्श्व महाबलः |
सधोजातः कटिं पातु पृष्ट भाग तु भैरवः || १३ ||
मोहनोज़धनं पातु गुंद मम जितेन्द्रियः |
ऊधर्वरेता लिंगदेशे वृषणं वृषभध्वजः || १४ ||
ऊरुद्वयं भवः पातु जानुयुग्मं भवान्तकः |
हुंकार पातु में जंधे फटकारो मम गुल्फके || १५ ||
वषट्कारः पाद पृष्टं वौषटकरोंडध्रिगुणस्त्ले |
स्वहाकरोडगुलीर्पाश्र्वे स्वधाकारोडगुली र्मम || १६ ||
त्वरितः सर्व सन्धिनमे रोमकूपे नर्सिहजीत |
त्वचं पातु मनोवेगः कालजिद रुधिरं मम ||१७ ||
पुष्टिदः पातु में मांस मेदो में स्वासितदोडवतु |
सर्वात्मास्थिञ्चयं पातु म्ज़नां मम जगत्प्रभुः || १८ ||
शुंक्र वृद्धिकरः पातु बुद्धिं वाचामधीश्वरः||
मूलधाराम्बुज पातु भगवान शरभेश्वरः || १९ ||
स्वाधिष्ठानमज़ः पातु मणिपुर हरिप्रियः |
अनाहंत शालुवेशो विशुद्ध जीवनायकः || २० ||
सर्वज्ञानप्रदो देवो ललाट में शदाशिवः |
ब्राहारन्ध्रं महादेवः पक्षिराजोड़खिलाकृतिम || २१ ||
शर्वलोक वशीकारः पातु मां खरगर्वजित |
व्रज -मुष्टि -वराभीती हस्त कलाग्नि सत्त्रिभः || २२ ||
विजया सहीतः पातु चैंन्द्री कुकभमाग्रिजित |
शक्ति -शूल - कपालासिंहस्तः सौदामिनी प्रभः || २३ ||
ज़यायुतो महा -भीमः पातु वैश्वानरी दिशाम |
दण्डासि -शूल -मुसलं हाल पाशांकुश- कराम्बुजः || २४ ||
यमान्तकोाजितायुत्कोयम्यी पातु दिशं यमीमः |
खड्ग -खेटाग्रि -परशु हस्तः शत्रु विमर्दनः || २५ ||
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