हरिद्रागणेश का प्रयोग बगलामुखी उपासना में विशेष रूप से किया जाता है। हरिद्रागणेश का प्रयोग शत्रु का हृदयद्रवीभूत करने, विघ्न विनाश, विवाहादि मंगल कार्योंदि, सौंदर्य व सुखसौभाग्य प्राप्ति हेतु किया जाता है।
विनियोगः-ओं अस्य श्रीहरिद्रागणपति मन्त्रस्य मदन ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, हरिद्रा गणेश देवता, मामाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यासः-
ओं मदन ऋषये नमः शिरसि।
अनुष्टुप छनदसे नमः मुखे।
हरिद्रागणेश देवतायै नमः हृदये।
विनियोगाय नमः सर्वांगे।
करन्यासः-
ओं हुं गं ग्लौं अंगुष्ठाभ्यां नमः।
हरिद्रागणपतये तर्जनीभ्यां नमः।
वरवरद मध्यमाभ्यां नमः।
सर्वजन हृदयम् अनामिकाभ्यां नमः।
स्तंभय स्तंभय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
स्वाहा करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।
अंगन्यासः-
ओं हुं गं ग्लौं हृदयाय नमः।
हरिद्रागणपतये शिरसे स्वाहा।
वरवरद शिखायै वषट्।
सर्वजन हृदयम् कवचाय हुम्।
स्तंभय स्तंभय नेत्रत्रयाय वौषट्।
स्वाहा करतल अस्त्राय फट्।
ध्यानम्ः-
पाशांकुशौ मोदकमेकदन्तं करैदधानं कनकासनस्थम्।
हरिद्राखण्ड प्रतिमं त्रिनेत्रं पीतांशुकं रात्रिगणेशमीडे।।
मंत्रः- ओं हुं गं ग्लौं हरिद्रागणपतये वर वरद सर्वजनहृदयं स्तंभय स्तंभय स्वाहा।
विनियोगः-ओं अस्य श्रीहरिद्रागणपति मन्त्रस्य मदन ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, हरिद्रा गणेश देवता, मामाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यासः-
ओं मदन ऋषये नमः शिरसि।
अनुष्टुप छनदसे नमः मुखे।
हरिद्रागणेश देवतायै नमः हृदये।
विनियोगाय नमः सर्वांगे।
करन्यासः-
ओं हुं गं ग्लौं अंगुष्ठाभ्यां नमः।
हरिद्रागणपतये तर्जनीभ्यां नमः।
वरवरद मध्यमाभ्यां नमः।
सर्वजन हृदयम् अनामिकाभ्यां नमः।
स्तंभय स्तंभय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
स्वाहा करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।
अंगन्यासः-
ओं हुं गं ग्लौं हृदयाय नमः।
हरिद्रागणपतये शिरसे स्वाहा।
वरवरद शिखायै वषट्।
सर्वजन हृदयम् कवचाय हुम्।
स्तंभय स्तंभय नेत्रत्रयाय वौषट्।
स्वाहा करतल अस्त्राय फट्।
ध्यानम्ः-
पाशांकुशौ मोदकमेकदन्तं करैदधानं कनकासनस्थम्।
हरिद्राखण्ड प्रतिमं त्रिनेत्रं पीतांशुकं रात्रिगणेशमीडे।।
मंत्रः- ओं हुं गं ग्लौं हरिद्रागणपतये वर वरद सर्वजनहृदयं स्तंभय स्तंभय स्वाहा।
गुड़ व हरिद्रा पिष्ठी से अथवा हरिद्रा से गणपति जी की प्रतिमा बनाकर पूजन कर भोगादि करें 4 लक्ष का पुरश्चरण कर हल्दी मिश्रित अक्षतों से दशांश होम कर तर्पण, मार्जन, ब्राहमण को भोजन करायें। लाजा से होम करने पर कन्या को वर की प्राप्ति होवे।